Monday, January 4, 2010

दर्द नया है, ग़म वही फिर पुराना क्यूँ है



दर्द नया है, ग़म वही फिर पुराना क्यूँ है
आज भी ये दील उसका दीवाना क्यूँ है?

ग़र है मोहब्बत, तो आंखों में दिखेगी
लबों से कह कर प्यार जताना क्यूँ है?

इश्क़ है, न दौलत न शौहरत पास मेरे
ग़म-ए-इश्क़ का बचा सिर्फ़ खज़ाना क्यूँ है?

गर भड़क रही है, ये आग उधर भी इतनी
न मिलने का उसके पास बहाना क्यूँ है?

करता है इश्क़ हर कोई इस जहाँ में लेकिन
दिलवालों के खिलाफ फिर ये ज़माना क्यूँ है?

लोग खुद ही बन जाया करते हैं अपने
किसी को कह कर अपना बनाना क्यूँ है?

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